कोरोना वायरस के खतरे को देखते हुए 4 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने होली के अवसर पर समूह में इकट्ठा नहीं होने की सलाह दी थी और खुद भी होली समारोह में शामिल नहीं होने की घोषणा की थी.इससे एक दिन पहले 3 मार्च को भारत भर में वायरस संक्रमित लोगों की संख्या 6 और एक दिन बाद 5 मार्च को यह संख्या 31 तक पहुंच चुकी थी.
देश में यूं पांव पसारता गया कोरोना
10 मार्च को होली से एक दिन पहले 9 मार्च के दिन कोरोना पीड़ितों की तादाद 46 हो गयी तो होली के एक दिन बाद 11 मार्च को यह संख्या 69 तक जा पहुंची. 10 मार्च तक कई अन्य राज्य भी कोरोना का पहला पॉजिटिव टेस्ट लेकर सामने आ चुके थे.इनमें तमिलनाडु, पंजाब और महाराष्ट्र (सभी 9 मार्च) और कर्नाटक (10 मार्च) शामिल हैं.
19 मार्च को जब प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संबोधन दिया, उस वक्त तक देश में कोरोना संक्रमित लोगों की तादाद 195 हो चुकी थी.तब तक संक्रमित राज्यों की सूची में जो कुछ और नाम जुड़ गये वे थे आन्ध्र प्रदेश (12 मार्च), हरियाणा, ओडिशा और छत्तीसगढ़ (17 मार्च), जम्मू-कश्मीर और पश्चिम बंगाल (18 मार्च).
22 मार्च आते-आते कोरोना पीड़ितों की संख्या 360 पहुंच गयी. यह वह तारीख थी जिस दिन प्रधानमंत्री की अपील पर पूरे राष्ट्र ने कोरोना वॉरियर्स के लिए तालियां और थालियां बजायी. 24 मार्च को राष्ट्र के नाम प्रधानमंत्री के दूसरे संबोधन के वक्त तक संक्रमित मरीजों की तादाद 518 तक पहुंच चुकी है. मरने वालों की संख्या 10 है. अब तक संक्रमित प्रदेशों की सूची में जो नये नाम शामिल हो चुके हैं उनमें शामिल हैं मध्यप्रदेश, हिमाचल और गुजरात (20 मार्च), बिहार (21 मार्च), असम (22 मार्च) और मणिपुर (24 मार्च).
देश में जो प्रदेश कोरोना के चंगुल से बचे हुए हैं उनमें झारखण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिजोरम, नगालैंड, सिक्किम और त्रिपुरा शामिल हैं.मगर, क्या ये राज्य भी कोरोना के चंगुल से बचे रह सकेंगे? इसकी संभावना बहुत कम है.कारण यह है कि जो गलतियां हो चुकी हैं उसके अंजाम को भुगतना ही पड़ेगा.
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क्या तीसरे चरण में पहुंच रहा है कोरोनावायरस?
असम में कोरोना संक्रमण का सामने आया ताजा मामला इस आशंका को मजबूत करता है कि अब संक्रमण पहले और दूसरे चरण के आगे तीसरे चरण में पहुंचता दिख रहा है. देश के विभिन्न राज्यों में कोरोना संक्रमण के जो पहले मामले सामने आए हैं, उनमें से असम इकलौता ऐसा प्रदेश है जहां संक्रमण एक बच्ची से आया है जो कहीं विदेश नहीं गयी. मतलब ये कि हमें नहीं पता कि उस बच्ची में संक्रमण कैसे आया? यह बच्ची बिहार की रहने वाली है.19 मार्च को जोरहाट आयी थी.यह मामला असम के लिए इस मायने में सुखद है कि वह रह रहे लोग अब तक कोरोना के संक्रमण से बचे हुए हैं मगर असम समेत समूचे देश के लिए इस मायने में खतरनाक है कि यह तीसरे स्टेज का उदाहरण है.इस स्टेज में संक्रमण कहां से आया, इसका पता नहीं चलता.
केरल में घंटी बज चुकी थी,देश ने नहीं सुनी
केरल, जहां पहला केस 30 जनवरी को सामने आया.एक मेडिकल प्रोफेशनल 24 जनवरी को वुहान से लौटा था. पहले कोलकाता और फिर थ्रिसुर.30 जनवरी को यह केस रिपोर्ट हुई.दूसरा केस अलप्पुझा और तीसरा केस कासरगोड में दर्ज होते ही सरकार ने इसे राज्य आपदा घोषित कर दिया. यही वह वक्त था जब देश को चेत जाना चाहिए था. मगर, केरल की प्रादेशिक विपदा में देश ने राष्ट्रीय विपदा की आहट को महसूस नहीं किया.
1 मार्च तक यूरोपीय नागरिक स्क्रीनिंग से बचे रह गये!
राजस्थान भी उन प्रदेशों में शामिल है जहां कोरोना ने सबसे पहले दस्तक दी.यहां 1 मार्च को कोरोना संक्रमण के पहले मामले की पुष्टि हुई. संक्रमित व्यक्ति इटली से आया था.हवाई अड्डे से विदेशी दंपती सीधे टैक्सी लेकर जयपुर पहुंच गया, मगर हमारा निगरानी तंत्र मुंह देखता रह गया.ऐसा क्यों?
सवाल का जवाब 1 मार्च को ही प्रकाशित केंद्रीय मंत्री हर्षवर्धन के जवाब में मिल जाता है. सबसे पहले उनके दावे पर गौर करें. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री का दावा था कि नेपाल, इंडोनेशिया, वियतनाम, मलेशिया, चीन, हांगकांग, थाईलैंड, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर और जापान से आने वाले यात्रियों की देश के 21 हवाई अड्डों पर जाँच की जा रही है. उनके अनुसार उस समय तक हवाई अड्डों पर 5,57,431 यात्रियों की और बंदरगाहों पर 12,431 लोगों की जांच की जा चुकी थी.जाहिर है कि हवाई अड्डों पर जांच से यूरोप अछूता था. अन्यथा कोई कारण नहीं था कि इटली से आए लोग स्क्रीनिंग से नहीं गुजरते.यह सिर्फ राजस्थान के मामले तक ही सीमित नहीं है.इटली से भारत आए उस दो दर्जन लोगों के समूह से भी जुड़ा है जो कोरोना संक्रमित पाए गये थे.
ट्रेनों,बसों में यात्रा करते रहे संक्रमित लोग
विभिन्न राज्यों कोरोना संक्रमण के पहले मामले की पड़ताल करने पर एक बात सबमें नजर आती है. इन सभी मामलों में संक्रमण के शिकार व्यक्ति विदेश से लौटे थे.कुछ मामले निगरानी में रहे, कुछ नहीं रहे. जो मामले निगरानी में नहीं रहे, उनमें कोरोना संक्रमण व्यक्ति ट्रेनों में, बसों में यात्रा करते रहे. इसने स्थिति को भयावह बना डाला.ये मामले केंद्र सरकार के उन सभी दावों की पोल खोल देते हैं जिसमें हवाई अड्डों पर कड़ी निगरानी, लक्षण नहीं पाए जाने वाले मामलों को भी क्वॉरन्टीन करना और केस को पकड़ने का दावा रहा है.
राज्यवार कोरोना संक्रमण के पहले मामले
2 मार्च को कोरोना संक्रमण के जो 2 मामले दिल्ली में सामने आए उनमें से पहले मामले में युवक इटली, हंगरी और ऑस्ट्रिया होते हुए 25 फरवरी को स्वदेश लौटा था. हैदराबाद में 3 मार्च को संक्रमित पाया गया 24 वर्षीय युवक दुबई से लौटा था. हांगकांग के कुछ लोगों के भी वह संपर्क में आया था. 20 फरवरी को बेंगलुरू और 22 फरवरी को बस के जरिए वह हैदराबाद पहुंचा था. इस दौरान वह कुल मिलाकर 42 लोगों के संपर्क में आया.
उत्तर प्रदेश : 5 मार्च को गाजियाबाद में जो मामला सामने आया उसमें व्यक्ति ईरान से लौटा था. तमिलनाडु के कांचीपुरम में रहने वाले 45 वर्षीय व्यक्ति को 9 मार्च को कोरोना पॉजिटिव पाया गया. राज्य के इस पहले केस में भी व्यक्ति ओमान की यात्रा से लौटा था.पंजाब में 9 मार्च को संक्रमित पाया गया पहला केस उस व्यक्ति से जुड़ा है जो इटली से लौटा था. पंजाब के मुख्य सचिव (स्वास्थ्य)अनुराग अग्रवाल ने यह जानकारी दी थी. इस समय तक दुनिया भर में 1.1 लाख और भारत में 43 लोग संक्रमित हो चुके थे. महाराष्ट्र में के पुणे में पहला कोरोना संक्रमण केस 9 मार्च को आया. दुबई से लौटा एक दंपती का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव मिला. आन्ध्र प्रदेश में 12 मार्च को सामने आए पहले कोरोना संक्रमण के मामले में व्यक्ति इटली से 6 मार्च को नेल्लोर पहुंचा था.
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राज्यों के ये पहले मामले खोल रहे हैं सरकारी दावों की पोल
कर्नाटक, छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बिहार में कोरोना संक्रमण के पहले मामले इस बात की पुष्टि करते हैं कि हवाई अड्डों पर निगरानी तंत्र ही नहीं फेल हुआ है, बल्कि देशभर में इस दौरान निर्बाध भ्रमण की जारी रही सुविधा भी ख़तरनाक साबित हुई है. लोगों ने सेल्फ-क्वॉरेन्टीन के दायित्व को नहीं निभाया, तो सरकार की अहतियातन कार्रवाई कमजोर पड़ गयी. कर्नाटक में 10 मार्च को जो मामला सामने आया उसमें एक 40 वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर संक्रमित मिला. वह अमेरिका से लौटा था.
बेंगलुरू के एक आईटी कंपनी में काम करता था. अगले ही दिन 3 और लोगों के कोरोना संक्रमित होने की पुष्टि हुई. वे भी न्यूयॉर्क और दुबई होते हुए लौटे थे. छत्तीसगढ़ में लंदन से रायपुर लौटे 24 वर्षीय युवती में 17 मार्च को कोरोना टेस्ट पॉजिटिव पायी गयी. वह मुंबई एयरपोर्ट से 15 मार्च को ही लौटी थी. उसे उसके माता-पिता ने अस्पताल में भर्ती कराया.ओडिशा में 17 मार्च को पहले कोरोना संक्रमित मरीज की पुष्टि हुई. 33 वर्षीय युवक एक अनुसंधानकर्ता है और वह इटली से 6 मार्च को लौटा था. वह 12 मार्च को ट्रेन से भुवनेश्वर लौटा. पश्चिम बंगाल में 18 मार्च को एक 18 वर्षीय युवक कोरोना संक्रमित पाया गया. वह उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड से लौटा था. रविवार 15 मार्च को ही वह लौटा था. इस दौरान वह अपने परिजनों और ड्राइवर के संपर्क में आया. बिहार से कोरोना संक्रमण का पहला मामला और कोरोना से पहली मौत दोनों खबर एक साथ 21 मार्च को आयी. 38 वर्षीय सैफ अली मुंगेर का रहने वाला था और वह कतर से लौटा था. दो दिन पहले ही वह कोलकाता से पटना पहुंचा था. शनिवार की सुबह 9 बजे मृत्यु के बाद उसके कोरोना पीड़ित होने की पुष्टि जांच में हुई.
जिम्मेदारी किसकी?
22 मार्च को जनता कर्फ्यू, 23 मार्च से ट्रेनें बंद, 24 मार्च से घरेलू उड़ानों पर रोक और इससे पहले अंतरराष्ट्रीय उड़ानें रद्द कर देने के बीच विभिन्न राज्यों में लॉक डाउन और कर्फ्यू जारी है. अब 21 दिन के लिए पूरे देश में लॉकडाउन कर दिए गए हैं. इन सबके बीच एक बात साफ है कि राज्यों और केंद्र सरकारों के बीच प्रतिबंध और उसके प्रभावी नतीजे के लिए सामंजस्य का अभाव रहा. यही वजह है कि विदेश से संक्रमण लाते रहे लोग, उसे विभिन्न राज्यों में फैलाते रहे. आखिर कौन जिम्मेदारी लेगा?
आपको बता दे कि WHO के डायरेक्टर कह चुके हैं कि अगर कोरोनावायरस को हराना है तो ‘टेस्ट, टेस्ट, टेस्ट’ करते रहिए. भारत में हालांकि टेस्टिंग का एक अलग रास्ता अपनाया जा रहा है. नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में सीनियर फेलो और इकनॉमिस्ट अजय शाह का कहना है कि भारत को तेजी से टेस्टिंग करनी चाहिए. शाह के मुताबिक, जानकारी के आधार पर लॉकडाउन जैसे गंभीर फैसले लेने होंगे. शाह का अनुमान है कि महामारी से लड़ने के लिए भारत को रोजाना 2-3 लाख टेस्ट करने पड़ेंगे. भारत की मौजूदा टेस्टिंग पॉलिसी पर बात करते हुए शाह ने कहा, अगर हमें पता होगा कि संक्रमित लोग कहां हैं, तो हम महत्वपूर्ण फैसले ले पाएंगे. अगर हमें नहीं पता होगा कि संक्रमित लोग किस इलाके में हैं, तो बैन लगाना होगा और ये इकनॉमी के लिए खतरनाक है.अजय शाह ने कहा कि न्यायसंगत आइसोलेशन की जरूरत है और इसके लिए रोजाना 2-3 लाख टेस्ट करने पड़ेंगे.
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