फतेहपुर। रतनलाल में देश सेवा का जज्बा बचपन से ही था। दसवीं कक्षा से ही रतनलाल ने सेना व पुलिस में जाने के लिए शारीरिक दक्षता की तैयारी शुरू कर दी थी। रतनलाल के बचपन के दोस्त सुनील ने ‘पत्रिका’ से बातचीत में बताया कि रतनलाल बहुत मिलनसार था। जब भी गांव आता तो वह सब से मिलता था।
रतनलाल व सुनील आठवी कक्षा तक गांव में एक साथ पढ़े थे। रतनलाल नौवीं में पढ़ने के लिए अपनी मौसी के घर कॉपर चला गया। बाकी पढ़ाई उन्होंने वहीं से की। रतनलाल ने सीकर रहकर भी तैयारी की। सुनील बताता है कि रतनलाल जब भी गांव आता था तो खाली बैठे युवाओं से चिढ़ता था, वह कहता था देश के लिए कुछ करना चाहिए। सेना या फौज में जाने की सलाह देता था।
परिवार का पूरा बोझ था रतनलाल के कंधों पररतनलाल के दोस्त सुनील ने बताया कि कम उम्र से ही रतनलाल परिवार का बोझ उठा रहा था। रतनलाल के पापा विदेश में रहते थे। विदेश में उस समय उनके घाटा लग गया था। इसके बाद वो गांव आ गए। इससे उनकी आर्थिक स्थिति भी कमजोर हो गई। उसके बाद रतनलाल ने नौकरी लगने के बाद परिवार को संभाला। रतनलाल के सिर पर बहन के परिवार की भी जिम्मेदारी थी। रतनलाल के एक ही बहन है। रतनलाल के जीजा कई वर्ष तक बीमार रहे व बाद में उनका निधन हो गया था।
बेहद सरल स्वभाव का था रतनलालरतनलाल को बचपन में शिक्षक इंद्राज महला ने तीन वर्ष तक पढ़ाया था। इंद्राज महला को रतनलाल अपना आदर्श मानता था। इंद्राज महला ने बताया कि स्कूल में कुछ भी बात हो जाती तो वह सीधा मेरे पास ही आता था। शुरू से ही अनुशासन प्रिय था। वह बेहद सरल स्वभाव का था। कल उसकी मौत का समाचार सुना तो पैरों तले जमीन खिसक गई।