- Advertisement -
HomeNewsकोरोना संकट: कहां लौट रहे हो भइया? गांव-घर में भी आपका स्वागत...

कोरोना संकट: कहां लौट रहे हो भइया? गांव-घर में भी आपका स्वागत नहीं है!

- Advertisement -

कोरोना महामारी के चलते पलायन कर चुके लोगों के लौटने पर गांवों में दहशत है.लोग खुद पुलिस-प्रशासन को बुला रहे हैं.जगह-जगह गांव लौटे लोगों को 14 दिनों के लिए क्वारनटाइन किया जा रहा है.

तस्वीर 1

कोरोना के मुश्किल समय में वे लोग जो पैदल अपने घरों की ओर चल रहे हैं.अभी रास्ते में होंगे. बारिश हुई तो कहां सोए होंगे.कितने भीगे- कितने बचे होंगे.कंधों पर थैला टांगे.एक बच्ची अपने से कुछ छोटी बच्ची को गोद में थामे.साइकिल के हैंडल पर सिर टिकाए सोते बच्चे को कई सौ किलोमीटर के सफर पर ले जाते.पत्नी के पैर फ्रैक्चर हैं तो उसे कंधे पर ले जाते.भूखे पेट अपने ही श्रम से बनाए एक्सप्रेस वे- नेशनल हाईवेज़ पार करते.कितनी कहानियां एक साथ चल रही है. विभाजन के समय की तस्वीरों जैसी.

तस्वीर 2

पुणे में पढ़ने वाले दो छात्र बड़ी मुश्किल से चकराता के त्यूणी तहसील में अपने गांव पहुंचे, उन्हें राहत मिली कि कोरोना के संकट की इस घड़ी में वे अपनों के बीच पहुंच गए हैं.छात्रों के पहुंचने की खबर लगते ही गांववाले अलर्ट हो गए.स्थानीय प्रशासन को फ़ोन कर बुलाया और दोनों छात्रों को 14 दिनों के लिए अलग-थलग कर दिया गया.

तस्वीर 3

इमाम हसन बिहार के बेतिया ज़िले के रहने वाले हैं और हल्द्वानी के गौला नदी में खनन कार्य में मज़दूरी कर अपने परिवार का गुज़ारा कर रहे हैं.इमाम के साथ 270 मज़दूर हैं जो संकट की इस घड़ी में वापस अपने घरों को लौटना चाहते हैं.इमाम बताते हैं कि उन्हें और उनके साथियों को भोजन की दिक्कत नहीं है, ठेकेदार की ओर से उन्हें खाना दिया जा रहा है लेकिन हर हफ्ते अपनी मज़दूरी जमा कर वे अपने परिवार को भेजते हैं, जिससे उनका गुज़ारा होता था.उनके परिवार में पांच बेटियां, दो बेटे, पत्नी और माता-पिता हैं.वे परिवार के अकेले कमाऊ सदस्य हैं.कहते हैं कि गांव लौट पाते तो कुछ भी करके परिवार पालते.इस समय उनका परिवार सरकारी राशन के भरोसे है. वे इस समय किसी भी तरह अपने परिवार के साथ होना चाहते हैं.

अचानक घोषित लॉकडाउन से मची अफरा-तफरी

सीपीआई-एमएल के राजा बहुगुणा बताते हैं कि हल्द्वानी-नैनीताल में पश्चिम-पूर्वी चंपारण के एक हज़ार से अधिक मज़दूर फ़ंसे हुए हैं.कइयों के पास खाने-रहने तक का पैसा नहीं है.वे बहुत परेशान हैं.उन्हें मदद की ज़रूरत है.

देहरादून में बिहार के किशनगंज जिले के अलग-अलग गांवों से आए दस मज़दूर मकान बनाने के काम में दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं.लॉकडाउन में काम ठप हो गया.इनमें हिंदू-मुस्लिम दोनों ही हैं. सबकी परिस्थिति एक जैसी है.वे अपने कमरों में बंद हैं.पैसे नहीं है तो सब्जी भी लेने कहां जाएं. एक-दो दिन अपने पैसों से गुज़ारा कर लिया.एक-दो दिन बगल की दुकान से उधार लेकर काम चल गया.इन्हीं में से एक बाबू कहते हैं कि कोई उधार भी कितने दिन देगा.यहां के पार्षद को भी मदद के लिए बोला है.नाम-पता लिखकर दिया है.24 घंटे हो गए, अभी तक कुछ नहीं हुआ है.इन दस में से एक लड़का अभी अठारह साल का हुआ है.एक लड़के की इसी महीने शादी होनी थी.उनकी ये भी चिंता है कि घरवालों को ये न पता चले कि वे मुश्किल में हैं.नहीं तो घरवाले भी परेशान हो जाएंगे.

पलायन कर चुके लोग लौटे तो गांववाले बना रहे दूरी

गंगोत्री के विधायक गोपाल सिंह रावत के पास लगातार ऐसे लोगों के फोन आ रहे हैं जो होटलों में काम करने के लिए दिल्ली, मुंबई, गोवा चले गए.वे अपने घरों को लौटने के लिए परेशान हो रहे हैं. कुछ दिनों पहले कुछ लोग ऋषिकेश पहुंचे.जहां कोरोना की जांच के लिए एम्स में थर्मल स्क्रीनिंग कर उन्हें उत्तरकाशी लाया गया.

उत्तरकाशी के ज़िलाधिकारी डॉ आशीष चौहान बताते हैं कि गांव लौटे लोगों को 14 दिनों के लिए क्वारनटाइन किया जा रहा है.उत्तरकाशी में ही सड़क से करीब 18 किलोमीटर दूर एक गांव पहुंचे दो युवकों को गौशाला में 14 दिनों के लिए रखा गया.चमोली में ग्राम प्रधान और आशा कार्यकर्ताओं की मदद से विदेशों और देश के दूसरे हिस्सों से आने वाले लोगों की पहचान की जा रही है और उन्हें 14 दिनों के लिए होम क्वारनटाइन कराया जा रहा है.लेकिन ये चिंता भी है कि सीमाएं सील होने से पहले ही बड़ी संख्या में लोग अपने गांवों को लौट चुके हैं.इन्हें कहीं रोका नहीं गया। इनकी कहीं रिपोर्टिंग नहीं है.वे अपने घरों को पहुंच चुके हैं.

वीरान गांवों में लौटे प्रवासी

राज्य के ऐसे भी गांव थे जो पलायन के चलते वीरान हो गए थे.जहां इक्का-दुक्का परिवार ही रह रहे थे.अब उन गांवों में भी वापसी हुई है.लेकिन वापस लौटे इन लोगों का स्वागत नहीं हो रहा है. कोरोना की दहशत ने लोगों को संदेह से भर दिया है.पौड़ी में ऐसे कई गांव हैं जहां कई घरों में बरसों से ताले लटके थे.बहुत कोशिश के बाद भी ये लोग अपने घर नहीं लौटे लेकिन कोरोना के समय में वापस आए.अब गांववाले आशंकित हैं कि कहीं ये अपने साथ संक्रमण न लेकर आए हों.राज्य के गांवों-कस्बों में स्वास्थ्य सुविधाएं न के बराबर हैं.वे चाहते हैं सरकार इन पर रोक लगाए.यहां इस तरह के सवाल भी पूछे जा रहे हैं कि रोजगार के लिए पलायन कर महानगरों में बस जाने वाले लोग क्या इस आर्थिक स्थिति में भी नहीं हैं कि वे वहां एक महीने गुजारा कर सकें.

लॉकडाउन के 24 घंटे नहीं झेल सके पलायन करने वाले

खेती-किसानी को लेकर काम कर रही फीलगुड ट्रस्ट के सदस्य रणजीत सिंह कहते हैं पिछले 8-10 वर्षों से राज्य के बाहर काम कर रहे युवा लॉकडाउन के 24 घंटे नहीं झेल सके.क्या इतने समय में इनके पास रहने की अपनी कोई जगह नहीं थी.अपने पास खाना बनाने की व्यवस्था नहीं थी.ज़ो अपनी खेती की ज़मीन बंजर छोड़कर चले गए, अपने घरों पर ताले लगाकर चले गए, क्या ये 21 दिनों तक वहीं गुज़ारा करने लायक नहीं थे.

उत्तराखंडियों के लिए हेल्पलाइन नंबर

राज्य से बाहर फंसे उत्तराखंडी लोगों की मदद के लिए चौतरफा सूचनाओं के बाद उत्तराखंड सरकार ने हेल्पलाइन नंबर जारी किए हैं.लैंडलाइन नंबर 0135-2722100 और व्हाट्सएप नंबर 9997954800 पर संदेश देकर मदद मांगी जा सकती है.सरकार ने भरोसा दिया है कि राज्य से बाहर फंसे लोगों को जरूरी मदद की जाएगी.इसके साथ ही सीएम हेल्पलाइन नंबर 1905 को भी अगले आदेशों तक कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए इस्तेमाल करने के निर्देश जारी किए हैं.
The post कोरोना संकट: कहां लौट रहे हो भइया? गांव-घर में भी आपका स्वागत नहीं है! appeared first on Thought of Nation.

- Advertisement -
- Advertisement -
Stay Connected
16,985FansLike
2,458FollowersFollow
61,453SubscribersSubscribe
Must Read
- Advertisement -
Related News
- Advertisement -