सीकर. रोडवेज के घाटे का सबसे बड़ा कारण निजी बसों की प्रतिस्पर्धा को बताया जा रहा है कि हकीकत यह है कि घाटे से उबारने की रोडवेज की कवायद को खुद कारिंदे ही चूना लगा रहे हैं। इसकी बानगी सीकर डिपो के खंडेला रूट पर देखने को मिल रही है। हाल यह है कि पिछले एक माह में खंडेला रूट की बसों का कटेलमेंट हो रहा है। डिपो ने खंडेला रूट की करीब छह बसों का संचालन बंद कर दिया है। खंडेला मार्ग के 45 गांव व ढाणियों के यात्री परेशान है। मजबूरी में इन यात्रियों को निजी बसों के भरोसे रहना पड़ रहा है जबकि जिले में केवल यही एक मार्ग ऐसा बचा हुआ है जहां प्रतिस्पर्धा में रोडवेज निजी बसों से आगे हैं। गौरतलब है कि खंडेला रूट पर रोजाना 15 बसों का संचालन किया जाता रहा है।
दो हजार किमी का घाटासीकर डिपो को हर माह औसतन 55 हजार किलोमीटर संचालन का लक्ष्य दिया जाता रहा है। कई शिड्यूल बंद होने के कारण डिपो की ओर से पहले ही पांच किलोमीटर बसों का संचालन लक्ष्य से कम हो रहा है। ऐसे में खंडेला रूट के बंद होने के कारण करीब दो हजार किलोमीटर ओर कम हो गए हैं। इधर डिपो के कर्मचारियों ने बताया कि खंडेला रूट पर परिचालकों की कमी के नाम पर रोजाना कटेलमेंट हो रहा है। जबकि डिपो ने कई परिचालकों को पद के विपरीत लगा रखा है।
इनका कहना हैयह सही है कि खंडेला रूट डिपो को सबसे अच्छी आय देने वाला रूट है। कई बार स्टॉफ की कमी के कारण कटेलमेंट हो जाता है। कटेलमेंट के कारणों को लेकर स्टॉफ से जानकारी ली जाएगी। चन्द्र शेखर महर्षि, मुख्य प्रबंधक सीकर डिपो
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